सबसे कठिन क्या है?
संघर्ष, परिश्रम, या तूफ़ानों से लड़ना,
नहीं!
सबसे कठिन होता है
एक स्त्री का “न” कहना,
वो “न” जो उसकी आत्मा बचाता है,
मगर समाज के कानों तक पहुँचते ही
अनसुना कर दिया जाता है।
सबसे भयावह क्या है?
युद्ध, महामारी, या जंगल की आग,
नहीं!
सबसे भयावह है वो सन्नाटा,
जो घुल जाता है एक लड़की की चीख में,
जब उसकी आवाज़ को दहलीजों में क़ैद कर
“घर की इज़्ज़त” का तमगा पहना दिया जाता है।
सबसे सूना क्या है?
रेगिस्तान, उजड़े घर, या खाली मैदान,
नहीं!
सबसे सूनी होती है वो आँखें,
जो अपने ही आँगन में परायी हो जाती हैं,
जो दहेज की सूची में बदल दी जाती हैं,
जो उम्मीदों के दीप बुझाकर,
अपनी ही रौशनी से अंधेरा कर दी जाती हैं।
सबसे भारी क्या है?
पत्थर, लोहा, या पहाड़ों का बोझ,
नहीं!
सबसे भारी होती है वो चुप्पी,
जो एक स्त्री तब ओढ़ लेती है
जब उसके शब्दों को ज़हर कहकर
सहने की परंपरा में बदल दिया जाता है।
सबसे असहनीय क्या है?
ग़ुलामी, तिरस्कार, या मौत का डर,
नहीं!
सबसे असहनीय होता है
हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरना,
सपनों को सांसों में दबाकर,
ज़िंदा होने का ढोंग करना,
और फिर भी “भाग्यशाली” कहलाना।