बेवजह सब से उलझना अच्छा नहीं होता कभी
सारी हद को पार करना अच्छा नहीं होता कभी
जिसके चेहरे पर दरारें खुद आ गई हों बेशुमार
ऐसे दर्पण में है संवरना अच्छा नहीं होता कभी
काम करना पर किसी दिन सोना चादर तानके
बेसबब दिन रात खटना अच्छा नहीं होता कभी
खुशबू से गर दोस्ती है फिर दुश्मनी क्यूँ फूल से
हर कली को है मसलना अच्छा नहीं होता कभी
बन सके क्या जिन्दगी में इस जहाँ के बादशाह
दास अपना यूँ उछलना अच्छा नहीं होता कभी
जिद तो बच्चे की लबालब मासूमियत से है भरी
तितलियां उड़ती पकड़ना अच्छा नहीं होता कभी