बहू नहीं, बेटी चाहिए
बेफिक्र होकर मन बनाइये
घर की लक्ष्मी बनकर रहेगी
घर आंगन पर राज करेगी
भगवान का दिया सब कुछ है
रुतबा, पैसा भर-भर के
बस संभालने वाली चाहिए
बहू नहीं, बेटी चाहिए
मां का आंगन लांघा जो
मुड़कर कभी देखा नहीं
मां की ममता, पिता की सीख
झोली में भर ले चली
पराये जो थे, उन्हें बनाया अपना
नये माता पिता का मान रखा
लेकिन पराये जो थे, क्या हुए अपने?
निकलते रहे कमियाँ, देते रहे उलाहने,
बरसों से है रीत यही
कथनी और करनी का फर्क वही
बहू तो बेटी बन जाती है
क्या सास कभी माँ बन सकी?
चित्रा बिष्ट

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




