नींद से कह दो न अब आने की ज़रूरत क्या है,
जब सुकून ही नहीं दिल में तो सहर की ज़रूरत क्या है?
कोई आवाज़ है जो रातों में काँपती रहती है,
मगर कौन है, क्या है — इस पहचानी सी हैरानी की ज़रूरत क्या है?
जिस्म बिस्तर पे है, रूह गलियों में भटकती है,
ऐसी टूटी हुई साँसों को भी अब थक जाने की ज़रूरत क्या है?
पूछता हूँ खुद से — क्या खोया है, क्या पाया है,
पर जवाबों से ज़्यादा अब सवालों की ज़रूरत क्या है?
आँखें सोई नहीं पर ख्वाब जागते रहते हैं,
इस अधूरी सी नींद को भी अब कहानी की ज़रूरत क्या है?
कुछ है जो खटकता है, पर नाम नहीं आता,
ऐसे अनाम दर्द को भी अब सुनाने की ज़रूरत क्या है?
हर रिश्ता किसी सिले हुए लफ्ज़ जैसा लगता है,
अब दिल के इस सन्नाटे को भी तर्जुमानी की ज़रूरत क्या है?
जिस बेचैनी का चेहरा नहीं, पर साया हर तरफ़ है,
उससे लड़ते हुए भी अब कोई निशानी की ज़रूरत क्या है?
“शारदा” ये जो नींद से पहले एक जलन उठती है,
क्या इस जलन को भी अब कहानी की ज़रूरत क्या है?

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




