दर्द की हद से भी गुजरना पड़ता है,
जिंदा रहने के लिए मरना पड़ता है।
जिसके बारे में कभी सोचा नहीं था,
कभी-कभी ऐसा भी करना पड़ता है।
अब हुआ मालूम क्यों चुभते हैं शीशे,
दर्द के वास्ते इन्हें बिखरना पड़ता है।
इस तरह से बढ़ने लगी मजबूरियाँ,
झुर्रियों से चेहरा सँवारना पड़ता है।
आते हैं ऐसे खरीददार भी जिनके लिए,
नुकसान अपनी जेब से भरना पड़ता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव