तुम्हारे आने से जो टूटी, वो मैं ही थी — हाँ, सच था,
मगर अब जो हूँ, वो राख नहीं — जलता हुआ शब्द है।
तुम समझे थे कि मैं रोऊँगी, तुम्हारे चले जाने पर,
तुम भूल गए — मेरी चुप्पी सबसे तेज़ प्रतिशोध है।
तुम्हारे “मुझे space चाहिए” वाले नाटक में
मैंने अपना आसमान वापस ले लिया है।
शुक्र है —
तुम जैसे आए, और मैं मर गई,
क्योंकि अब जो मैं हूँ — उसमें
तुम घुस नहीं सकते।
अब मेरी मुस्कान में तेज़ाब घुला है,
और मेरी चाय में आत्मसम्मान।
अब मैं तुम्हारी validation से परे हूँ,
तुम्हारे like, तुम्हारी seen, तुम्हारी vibe —
सब obsolete हो चुके हैं।
तुम cool थे?
हाँ, इतने cool कि आग बुझा देते थे,
पर मैं अब वही आग बन चुकी हूँ,
जिसमें तुम्हारी तरह के लोग
पिघल जाते हैं।