खजूर और बांस से तुलना
यदि बड़ों में बड़प्पन नहीं
क्षमा भाव नहीं
सही गलत की परख नहीं
त्याग का भाव नहीं
संस्कारों में सभ्यता नहीं
तो समझ लेना कि
उनका अहम् उस खजूर के पेड़ की तरह है
जो स्वयम् को सबसे ऊँचा समझता है
परन्तु न किसी को धूप में छाया दे सकता है
न ही उसके फल तक कोई पहुँच कर अपनी भूख मिटा सकता है ..
उस बांस के पेड़ की तरह है
जो अपनी ऊँचाई पर बहुत घमण्ड करता है
अपनी बाहरी मज़बूती के अहम् में यह भी भूल जाता है
कि फूल भी नहीं खिलते जिस पर,वह भीतर से खोखला होता है
और प्यार से सहलाने पर भी हाथ में काँटे ही लगते हैं ..
वन्दना सूद