"ग़ज़ल"
ज़िंदगी धड़कनों का अजब खेल है!
जो जिया पास वो जो मरा फ़ेल है!!
जिस्म और रूह का रिश्ता भी ख़ूब है!
आत्मा क़ैदी है ये बदन जेल है!!
मौत के सामने आदमी वो चराग़!
जिस में बाती बची ना बची तेल है!!
हर तरफ़ नफ़रतें हर तरफ़ दुश्मनी!
लोगों के दरमियाॅं अब कहाॅं मेल है!!
मंज़िलों से हैं 'परवेज़' सब बे-ख़बर!
हैं मुसाफ़िर सभी ज़िंदगी रेल है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद