हक़ीक़त को दिल की वो लिखते कहाँ हैं।
बिख़रना था उनको बिख़रते कहाँ हैं।
समेटे हुए हैं वो ख़ुद में ही ख़ुद को,
अभी ख़ुद से बाहर निकलते कहाँ हैं।
समझते हैं अपना हमें आईना वो,
बिना देखे हमको सँवरते कहाँ हैं।
किसी से बिछड़कर ये हम आज समझे,
बिछड़ते हैं जो फिर वो मिलते कहाँ हैं।
हक़ीक़त को दिल की वो लिखते कहाँ हैं।
बिख़रना था उनको बिख़रते कहाँ हैं।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




