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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है? - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

न्याय की बात करो तो करें,
अनुचित में उलझाओ ना जी,
न्याय कहाँ अब शेष रहा,
तो उचित कहाँ से लाओगे,
कहने को कहलो जो कहना,
कहने वाला रुका कहाँ है,
ज्ञान ध्यान की बातें करते,
'ज्ञान' कहाँ है? 'ध्यान' कहाँ है?
सर्व सहमति से लिया फैसला!,
'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है?,
सर्व में तो सब लोग हैं आते,
बाकी के फिर लोग कहाँ हैं?,
उड़ान देखी है जहाँ उड़ते हो,
खुद ने देखा क्या 'पंख' कहाँ हैं?,
जमीं पैर नहीं रखते साहब,
सारा मसला तो जमीं का है,
खुद के गिरहबान में झांको,
सर्वसहमति न होजाये,
फिर न कहते फिरना सबसे,
'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है?,
सर्व में तो सब लोग हैं आते,
बाकी के फिर लोग कहाँ हैं?

___अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

साक्षी लोधी said

बहुत सुंदर प्रस्तुति

श्रेयसी said

वाह लाज़वाब रचना हमेशा की तरह बहुत सुंदर बहुत ख़ूब। आपको सादर प्रणाम अशोक जी 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह अशोक जी,एक व्यंग्य भरी सारगर्भित कविता।" ज्ञान","ध्यान",पंख" जैसे लाक्षणिक अर्थ वाले शब्दों के यथोचित प्रयोग से आपकी कविता का भाव सौंदर्य और निखर गया है।"मेरी " इसमें सहमति कहां है,। संगठन में, परिवार में कुछ लोग ऐसे होते है जो अपनी ओर से ठोस निर्णय नहीं ले पाते और न ही निर्णय पर हामी भरते,उलझाऊ प्रवृत्ति के होते हैं। पांवों के नीचे अपनी जमीन का अंदाज नहीं लगा पाते। अनिर्णय भाव से दबे लोगों को खूबसूरत फटकारा है, उंगली दिखाया है
आपकी ये भावपूर्ण रचना ने। वाह, बधाई,सादर अभिनन्दन।

शिवचरण दास said

बहुत सुन्दर. ...आज के न्याय की परत खोलती रचना. ..सीधी सपाट विवेचना

वन्दना सूद said

'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है?,
सर्व में तो सब लोग हैं आते,
बाकी के फिर लोग कहाँ हैं?👌👌👏👏भावनाओं से ओत प्रोत रचना

रीना कुमारी प्रजापत said

Bahut sundar 👌🙏😊 pranaam

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