न्याय की बात करो तो करें,
अनुचित में उलझाओ ना जी,
न्याय कहाँ अब शेष रहा,
तो उचित कहाँ से लाओगे,
कहने को कहलो जो कहना,
कहने वाला रुका कहाँ है,
ज्ञान ध्यान की बातें करते,
'ज्ञान' कहाँ है? 'ध्यान' कहाँ है?
सर्व सहमति से लिया फैसला!,
'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है?,
सर्व में तो सब लोग हैं आते,
बाकी के फिर लोग कहाँ हैं?,
उड़ान देखी है जहाँ उड़ते हो,
खुद ने देखा क्या 'पंख' कहाँ हैं?,
जमीं पैर नहीं रखते साहब,
सारा मसला तो जमीं का है,
खुद के गिरहबान में झांको,
सर्वसहमति न होजाये,
फिर न कहते फिरना सबसे,
'मेरी' इसमें सहमति कहाँ है?,
सर्व में तो सब लोग हैं आते,
बाकी के फिर लोग कहाँ हैं?
___अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'