अपने गमों को भुलाकर
ज़िंदगी को थोड़ी सुकून से क्या जीने लगी थी,
कि उसे खबर हो गई कि मैं अब खुश हूॅं।
सुहाया नहीं उसे ये सब और आ गई
वो मुझे फिर से तकलीफ़ देने,
और फिर वही किया जो पहले किया था उसने।
ऐसा क्या बैर उसका मुझसे,
कि अपनी होकर भी ग़ैरों जैसा सुलूक करती है
साथ मेरे।
वो कमबख़्त मेरी खुशी की खबर सुन,
होश खो देती है अपने।
वजह समझ ना आई
उसकी मुझे इस तरह रुसवा करने की,
शायद जलती है वो मुझसे।
कितना संघर्ष किया मैंने अपनी इस ज़िंदगी के
लिए ये तो वो जानने की कोशिश करती नहीं,
और बस दर्द पर दर्द देती रहती है मुझे।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐