बिना फ्रेम का समाज एक दर्पण
हाँ है समाज एक दर्पण
रीति रिवाज के हजारों त्याग अर्पण
हाँ है हजारों त्याग अर्पण
भेद-भरम, ऊंच-नीच कितना है समर्पण
हाँ है कितना समर्पण
रिवाज की खिड़कियां से झांका तो है तर्पण
हाँ है वो तर्पण
न कभी उगारे मांगे वो आत्म समर्पण
हाँ है मांगे वो आत्म समर्पण
जिये भी कैसे बंधनमें जंजीरो का जकड़न
हाँ है जंजीरो का जकड़न
बिना फ्रेम का समाज एक दर्पण
हाँ है समाज एक दर्पण...........

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




