तुम मिटा सको ..वो प्रीत नहीं,
तुम दिखा सको ..वो जीत नहीं !!
है भाव ये अन्त:हिरदय का,
तुम जता सको ..वो हित नहीं !!
नदियों की जीत.. मिले सागर,
सागर की जीत..बने गागर !!
अपने स्वभाव में बहती रहे,
ये मृदा को उर्वर करती रहे !!
तुम हटा सको..वो नदी नहीं,
तुम झुका सको..वो धरा नहीं !!
है प्रीत ज़रा संगम की तरह,
तुम बदल सको ..वो रीत नहीं !!
----वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है