सांवली शाम बिछी हृदय में,
चांद की छिटकी छटा।
पुलकित रजनी लगी ढूंढने
निद्रित पलकों की घटा।
प्रेम की मिश्री घोले अश्रु में
नाचती मेघा मतवाली।
पहन अवतंस रजनीगंधा के
चमकी यामिनी काली।
परिमल अंचल ओढ़े चांदनी
संग चतुर चातक लाई रे।
रजत मोतियों के कोषों से
भरी विभावरी हर्षाई रे।
बार ले दीप स्वप ज्योतियों के
हँसकर कहता तम घनेरा।
ओ मतवाले संसार के करुणा
प्रतीक्षा कर उगेगा फिर सवेरा।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'