तुझसे बिछड़ के हमने ये जाना,
अब तो हर खुशी भी ग़म सा लगा।
जिस राह से तेरा नाम गुज़रा,
उस राह को भी सनम सा लगा।
तेरी हँसी का रंग था दिल पर,
अब हर मौसम बेरंग सा लगा।
तेरी आँखों की नमी से जाने,
पानी भी कुछ कम-कम सा लगा।
तेरे बिना जो जीना था ,
वो जीना भी किसी मातम सा तेरी बातों की रौशनी से पहले,
हर बात में कोई दम सा लगा।
तेरी यादों के धागों में उलझकर,
हर ख्वाब भी अब टूटा सा लगा।
जो चुप थे लब, वो भी रोने लगे,
तेरा ज़िक्र आया तो नम सा लगा।
तेरी खामोशी में भी थी सदा,
हर सन्नाटा मुझे सनम सा लगा।
अब तो तन्हाई भी कहती है,
तू जो गया, सब कुछ कम सा लगा।