कसाई मानव
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात "
बना कसाई कैसा यह मानव,
दानव भी जिससे हो शर्मसार।
रक्त पिपासा ऐसी जागी है,
हर मर्यादा से हुआ फरार।
छल कपट ही तेरा हथियार,
अधर्मी तू, न तुझको धिक्कार।
निर्मम हाथों से जीवन छीना,
वेदना की तूने रची दीवार।
तेरी क्रूरता की हद नहीं कोई,
पशु भी तुझसे भयभीत सदा।
कैसे सोता है तू रात भर,
जब चीखों से गूँजती फिज़ा।
यह कैसा हृदय पत्थर का तेरा,
दया का अंकुर भी नहीं उगा।
मानवता भी तुझसे रूठ गई,
पिशाच का तूने रूप लिया।
कभी तो जागेगी तेरी आत्मा,
कभी तो पछताएगा तू ज़रूर।
इस पाप का बोझ लेकर कैसे,
चलेगा जीवन का यह क्रूर दुर।