दर्द सहते-सहते पत्थर हो गया,
अपनी थकान ओढ़ के सो गया।
काम करते समय लगे जो दाग,
पसीने की बूंदों से वो धो गया।
चंद पैसे जो कमाए घर के लिए,
जरूरतों को देख के वो रो गया।
हालातों ने तोड़ दिया कुछ ऐसे,
क्या सोचा? और क्या हो गया।
करने को सब की ख्वाहिशें पूरी,
खुद अपनी ही पहचान खो गया।
🖊️सुभाष कुमार यादव


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







