मौन खड़ी है मर्यादा, घर रण के मैदान हो गए - सुनील कुमार
Mar 25, 2024 |
कविताएं - शायरी - ग़ज़ल
|
लिखन्तु - ऑफिसियल
| 👁 35,472
गुलशन के सब गुल
धीरे धीरे दूर हो गए ।
अपने ही आंगन से
बिछड़न को मजबूर हो गए ।
आशाओं की मधुर महक से
ज्यादा ही मगरुर हो गए।
पतझड़ की दुधार बयारों से
पल में चकनाचूर हो गए ।
तुफानों के सन्नाटों से
एकदम खामोश हो गए ।
वक्त के बहते दरिया में
सब दागी हो कर बह गए ।
उजड़ गए सब बाग बगीचे
सब के सब वीरान हो गए ।
काल का पहिया ऐसा घुमा
सब के सब कंगाल हो गए ।
मुफलिसी के प्रचंड दौर में
बेअदब कुछ लतांत हो गए।
देख निष्ठुरता काल निसर्ग की
खामोश पाक प्रसून हो गए ।
किसलयों को सहारा ना मिला
भटकन को मजबूर हो गए ।
पालनों के शोर शराबे
सबके कानों से दूर हो गए।
नफरती नीरद ऐसा बरसे
दलदल की भरमार कर गए ।
लुटता कानन देख मालिनी के
अधर भी अमर्याद हो गए ।
यूं देख दहकता कोमल उपवन
रुंधे रुंधे से कंठ हो गए ।
आंखों में अश्कों के भरण से
नम जईफ रुखसार हो गए ।
मजबूर पिता को छाती में
अपनों के शर ही छेद कर गए ।
अपमानों की शर शैया पर
वृद्ध तात के प्राण लेट गए।
देख तात को इतना बेबस
कुसुमालय शमशान हो गए।
अराईशों के यूं लुट जाने के
किस्से अब आम हो गए ।
संस्कारों पर अहम की जय के
चर्चे सरे आम हो गए।
मौन खड़ी है मर्यादा
घर रण के मैदान हो गए।
- सुनील कुमार
रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)
+
लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी
likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।
लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम