मेरी शायरी को पढ़कर महसूस कर रहे।
अपनी कशिश शब्दों में तलाश कर रहे।।
अधूरी कामना की आवाज बनी शायरी।
क्या स्त्री क्या पुरुष आह खास भर रहे।।
जिसमें ज़ज्बात उभरे उनकी बात और।
बढ़ी धड़कन संभलती नही साँस भर रहे।।
रूहानी कंपन में सुकून पाने का मजा।
यही वो एहसास जिसकी खराश भर रहे।।
तुम जो चुपचाप ढूँढते हो क्या मिल गया।
तुम्हारे लिए लिखे गए 'उपदेश' भर रहे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद