मैं जन्मी — भूमि की देह से,
ना मातृगर्भ, ना कोई स्नेह से।
राजा ने कहा, “चमत्कार है यह!”
मैं बोली — “बस, आरंभ की हार है यह।
मुझे उठाया गया — जैसे कोई अमूल्य धातु,
पर मेरी आँखों में मातृत्व की कोई परछाईं नहीं थी।
मैं जन्मी नहीं, मुझे उपयोग किया गया।
धनुष खिंचा, सभा थमी,
पुरुषों की आँखों में लौ जमी।
राम ने तोड़ा — बना प्रियतम,
सीता बनी — पुरस्कार का भरम।
कभी सोचा किसी ने —
जब पुरुष हथियार से प्रेम सिद्ध करे,
तो स्त्री को किस हथियार से अस्वीकार का अधिकार मिले?
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