कविता : बिस्तर का चादर....
कभी भी घर पर
न खाने वालों
कभी होटल कभी
रेस्तरां जाने वालों
वहीं जा कर शराब और
विस्की का पैग लगाने वालों
कभी कुछ तो कभी कुछ
कचर पचार खाने वालों
अगर पेट में कभी
खराबी आएगी
मानो यार लुझमोशन
हो जाएगी
तभी पता खुद
चल जाएगा
पोटी बघेरा बिस्तर
में ही आएगा
बिस्तर का चादर - सादर
बड़ा गंदा होएगा
बाथरूम में जा कर फिर....
उसे कौन धोएगा ?
गंदे कपड़े धोने में तो
देखो जान ही जाएगा
खुद ही धोना पड़ेगा
नौकर थोड़ी आएगा ?
खुद ही धोना पड़ेगा
नौकर थोड़ी आएगा.......?

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




