रात है डरी डरी
कुछ हैं सहमीं सहमीं
गुप-चुप चुप-चुप
यौवनावस्था के दबे पांव बढ़ चलीं
रात है डरी -----
झींगुर की चर-पट
बाहर हवा की है सर-सर
घोर है अंधियारा
झाड़ियों में हुई कुछ सरसराहट
किसी के आगमन की आहट
एक बड़ी काली परछाई
दोनों हाथ बढाये
रात की ओर ललचाएं
रात की ओर बढ़ चली
रात है डरी ------
झींगुर का झाड़ी में गाना
झुरमुट का सरसराना
आगंतुक की आहट कुछ कानों में पड़ी
रात कुछ घबरायी थोड़ी सी शरमायी
देख चांद सितारों का खेला
रात फिर कुछ मुसकायी
दुनिया को मीठी नींद सुलाती
मीठे-मीठे से स्वप्न दिखातीं
हंसती -हंसाती अपने रस्ते बढ़ चलीं
पर वो छाई बन परछाई
उसकी और लपक चलीं
रात है डरी -डरी
कुछ है थमीं-थमीं
यौवनावस्था को बढ़ चलीं
रात पर छाई ज्यों-ज्यों गहराई
परछाई ने आकृति बढ़ाई
चंदा की गति अब पड़ गयी धीमी
सितारों ने खेल से कर ली अब छुट्टी
और रात हो गयी और भी जवां
बीता समय अब भोर की
तैयारी हो चली
परछाई बन भोर कली
रात को निगल चलीं
रात है -----
✍️#अर्पिता पांडेय

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




