कविता : च्याय....
सुबह जगा
मुंह धोने लगा
ब्रश मंजन लिया
दांत साफ किया
यूंही न रहा
चाय पीना चाह
फिर चीनी कम थी
दूध भी खतम थी
जल्दी से जल्दी बाजार गया
दूध के साथ चीनी भी लाया
चीनी और दूध रसोई में रखा
उसी बखत फिर एक चूहा दिखा
घुसा मुझे आ गया बड़ा
उसी चूहे के पीछे मैं दौड़ पड़ा
चूहा दौड़ते दौड़ते छुप गया कहीं
मैंने फिर चूहे को देखा ही नहीं
मैं जब बाद में रसोई में आया
सारा का सारा दूध बिल्ली ने खाया
फूटी किस्मत हाए रे हाए
पिया ही नहीं मैंने तो चाय
पिया ही नहीं मैंने तो चाय.......