इच्छाएं
मन इच्छाओं में अटका रहा और
जिंदगी हमें जी कर भी चली गयी.
यह जीवन एक यात्रा है,
सपनों में उलझा, इच्छाओं में घिरा,
हम खोजते रहे मंजिलों को,
पर राहों में कहीं खो गया सवेरा।
मन की कश्तियों को किनारा मिला नहीं,
साहिलों की पुकार सुनी नहीं,
इच्छाओं की लहरों में झूलते रहे,
और वक्त के तूफानों में बहते गए।
हम चले थे पाने को सब कुछ,
पर खोया वो जो सबसे जरूरी था,
चाहा बहुत कुछ, पाया भी पर,
जीने का मतलब समझा नहीं।
अब सोचते हैं उस बीते कल को,
जो हाथों से फिसलता रहा रेत की तरह,
जिंदगी हमें जी कर चली गयी,
और हम बंधे रहे इच्छाओं की बेड़ी में।
तो आओ, आज बस एक पल के लिए,
इच्छाओं को छोड़, जी लें इस पल को,
इस सफर में कहीं खो न जाएं फिर से,
जिंदगी का ये लम्हा, सच्चा और अनमोल।
राइटर ममता आंबेडकर मोटिवेशनल कवित्री