मैंने पूछा —
“भाई साहब, शांति चाहिए…”
वो बोले —
“किस वार्ड के हो?”
मैंने कहा — “मनुष्य जाति का!”
वो बोले — “अरे! फिर तो ऊपर जाओ,
शांति मंत्रालय में पता करो।”
मैं पहुँचा…
शांति मंत्रालय
बोर्ड पर लिखा था — “कृपया चुप रहिए, यहाँ शांति की प्रक्रिया जारी है”
अंदर देखा —
एक अफसर नींद में था,
दूसरा ध्यान कर रहा था (मोबाइल पर),
तीसरा लड़ रहा था — “फाइल मेरी थी!”
मैंने कहा —
“महोदय, जीवन में शांति चाहिए…”
वो बोले —
“आपने फॉर्म भरा?
शांति सबको नहीं मिलती यूँ ही,
पहले ‘योग्यता’ चाहिए!”
मैंने पूछा — “क्या योग्यता?”
वो बोले —
“धन, पद, प्रतिष्ठा…
या फिर कम से कम सोशल मीडिया पर
‘#innerpeace’ पोस्ट करने की काबिलियत!”
मैं निकला वहाँ से…
गया गुरुजी के पास —
उन्होंने आँखें बंद कीं,
कहा —
“शांति भीतर है…”
फिर बोले —
“लेकिन पहले ‘online course’ लो,
6999 में ‘मोक्ष फास्ट ट्रैक’ मिलेगा!”
मैंने कहा —
“इतना क्यों?”
वो मुस्कराए —
“शांति सस्ती नहीं होती बेटा…”
फिर मिला एक नेता —
मैंने पूछा —
“सर, शांति कब आएगी?”
वो बोले —
“जैसे ही हम सत्ता में आएंगे!
हमारी सरकार
हर मोहल्ले में ‘शांति चौपाल’ लगाएगी —
जहाँ सिर्फ़ हमारे लोग बोलेंगे,
बाकी चुप रहेंगे!”
मैंने पूछा —
“और जो चुप ना रहें?”
वो बोले — “उनको हम ‘शांत’ कर देंगे!”
फिर मैं पहुँचा —
एक युद्ध-प्रिय देश के राजदूत से मिलने।
मैंने पूछा —
“क्या आपके देश में शांति है?”
वो बोले —
“बिलकुल!
हम शांति स्थापित करने के लिए
पाँच युद्ध लड़ चुके हैं —
और छठा शांति का महायुद्ध बस शुरू ही करने वाले हैं!”
अब थक गया था मैं…
बैठा एक बूढ़े पेड़ के नीचे —
वो कुछ नहीं बोला,
कोई फॉर्म नहीं,
कोई वादा नहीं,
कोई ठेका नहीं…
बस उसकी छाया में
मैं कुछ देर बैठा —
और
शांति… खुद चलकर मेरे पास आ गई।
शांति का ठेका किसी के पास नहीं है।
जो दावा करता है,
वो बेच रहा है —
शांति नहीं, धंधा।
शांति जब आती है,
तो पत्तों की तरह आती है —
धीरे, मौन, और बिना प्रचार के।