मेरे घर में था अंधियारा
तेरे दर पर दीप जलाया ।
कण्ठ रुद्ध था पीड़ा से पर
तेरी जय का गीत ही गाया ।
नयन का बहता जल ये कैसे
तुझ को रोज चढ़ाऊं
कैसे तुझको शीश झुकाऊं।
उर छलनी कांटों से मेरा
तेरे पग पर फूल चढ़े थे
निपट अकेला वीराने में
सोचा भगवन साथ खड़े थे ।
टूट टूट बिखरा हर सपना
तूने छीन लिया हर अपना ।
सब तेरी मर्जी बतलाकर
कब तक धैर्य बधाऊं
कैसे तुझ को शीश झुकाऊं।
जीने मरने के प्रश्नों को
जब तुम हल न करा सके
चौराहे पर जीवन उलझा
तुम कोई राह न बता सके
कब मैंने मांगा मुझको भी
धन , वैभव , वरदान मिले
पर जब छाए धुंध नयन में
कुछ तो तेरा भान मिले
भक्ति वेदना पूछ रही है
युगों युगों से पूज रही है
हुआ वही जो तूने चाहा
फिर मैं कैसे हुआ अभागा
रो रो कर जब जीवन बीता
मर के स्वर्ग क्या जाऊ
कैसे तुझ को शीश झुकाऊं
आशीष पाठक "विलोम"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




