लिपट कर तिरंगे में मुझे
माए शुकून आया।
देख तेरा लाल अपने
देश के काम आया।
क्यों फट रहा कलेजा
मुझसा वीर ना कोई दूजा
धर कर तिरंगे को सर से
माए तू अब चुप हो जा।
हे मां तुझे रोने से
मुझको तकलीफ़ होगी।
तू तो खुद एक वीरांगना है
तू क्यूं रोवेगी।
देख सज के संवर के
तिरंगे में लिपटकर
आया है तेरा बेटा।
तू जनते ही रहना
मुझसा फिर वीर कोई बेटा।
देख कितनी शान से
लेटा है तेरा बेटा।
मरते नहीं शहीद
वो तो अमर हो जातें हैं
शहीदों का कोई एक घर
परिवार थोड़े हीं ना होता है
अरे मां शहीद तो सभी के होते हैं ।
जात धर्म पंथ परिवार
इस सब से ऊपर होते हैं
शाहिद किसी एक के नहीं
पूरे देश के होते हैं।
शाहिद पूरे देश के होते हैं...
शाहिद तो सबके हीं अपनें होते हैं..
शाहिद सबके होते है...
शाहिद पूरे देश के होते हैं...
शाहिद सबके होते हैं....