ससुराल के रिश्तों में सब्र रखा और कुछ नही।
हासिल सब कुछ हो गया बचा और कुछ नही।।
होश में आने के बाद परिवारिक चेहरे धुल गए।
बेखुदी जाती रही अपमान सहा और कुछ नही।।
मिल तो सकते थे तुम से बाकी दुनिया की तरह।
बेमानी में अपनेपन का दर्द सहा और कुछ नही।।
इम्तिहानो से घिरे घिरे क्या मिला मर कर हमे।
अनमोल मेरी जिंदगी जाती रही और कुछ नही।।
घर से बिछड़ कर अजनबी जैसे लोग हो गए।
ज़ख्म अब भी भरे नही 'उपदेश' और कुछ नही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद