कापीराइट - विरह गीत
रिमझिम रिमझिम बरसे सावन
रिमझिम रिमझिम बदरा छाए रे
कब आएंगे साजन मेरे
ये तन मन भीगा जाए रे
सखियां मेरी झूला झूलें
साजन के स॔ग सावन में
एक पगली सी बैठी हूं मैं
अपने घर के आंगन में
बिन साजन के सावन में
ये झुला कौन झुलाए रे
कब आएंगे ................
ऐसी क्या है मजबूरी जो
तुम ना आए सावन में
ये हरियाली सावन की
आग लगाए तन मन में
हाय जलन ये सावन की
मेरे मन को तङपाए रे
कब आएंगे ...............
लगती है मुझको फीकी
ये कोयल की मीठी बोली
सावन की बूँदों में साजन
अब भीगी है मेरी चोली
हाय अगन मेरे मन की
बिन साजन कौन बुझाए रे
कब आएंगे....................
आज नहीं जो तुम आए
कैसे मन को समझाउंगी
ये उलझन अपने मन की
अब कैसे मैं सुलझाउंगी
कब से बैठी हूं दर पर मैं
तेरी ही आस लगाए रे
कब आएंगे ................
क्यूं तेरे दर्शन को साजन
अब मेरे नैना तरस गए
मेरी प्यासी आंखों से ये
बादल सावन बरस गए
अब तो आ जा हरजाई
ये सावन भी बीता जाए रे
कब आएंगे .................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है