मैंने देखा एक मजदूर,
तोड़ रहा था वह पत्थर,
परंपरागत शैली में,
बिना किसी आधुनिक औजार के,
चिलचिलाती धूप में,
पसीने से तर-ब-तर शरीर,
लगातार करता वह सटीक प्रहार,
निरंतर अभ्यास से हुआ वो दक्ष,
कुशलता इतनी की रंच मात्र भी त्रुटि नहीं,
आवश्यकताओं की पूर्ति ने,
उसे श्रेष्ठ कारीगर बना दिया,
देखते ही देखते उसने चीर दिया,
पत्थर दो समान भागों में,
पर उसे सुस्ताने का अवसर नहीं,
निरंतर करता हथौड़े से प्रहार,
एक के बाद एक वह तोड़ता पत्थर,
मानो वो कह रहा हो,
अभ्यास व मेहनत से,
कठिन कार्य भी सरल हो जाते हैं,
साहस के आगे हार जाती हैं विपत्तियाँ,
प्रेम में मनुष्य कुछ भी कर सकता है,
पहाड़ हो या पत्थर दोनों चीर सकता है,
सहसा याद आ गए मुझे माँझी,
नतमस्तक हूँ उनके धैर्य और साहस के आगे।
🖊️सुभाष कुमार यादव