संसार के जमींदार तो एक ही हैं
जो सबके हृदय में ज्योत बन कर दिव्यमान हैं
हम किसान हैं उनके खेतों के
जो मनुष्य जन्म पा कर धन्य हुए हैं
और अपने कर्मों के फलों से शोभायमान होते हैं।
उधार और उद्धार दो खाते चलते हैं उनके
सिमरन के लिए सांसें ज्यादा मिल जाएँ
तो खाते में उधार लिख दिया समझ लेना
जीवन सम्भाल कर सवाँर दिया
तो खाता खत्म कर उद्धार मिल गया समझ लेना।
माली जैसा बीज बोता है
ऋतु आने पर वैसा ही फल पाता है
संतोष ही सबसे बड़ा धन है
सांसें हैं तो कर्मों को निखार कर गति अच्छी पा सकते हैं
क्योंकि सन्मुख की गति ओर होगी
विमुख गति क्या पाएँगे क्या पता …
वन्दना सूद
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