बेटा बेटी और बहू पर्देशी हाे गए,
वेह कभी घर न आये वहीं के बन रह गए।।
बुजुर्ग माता पिता घर पर ही रह रहे,
कभी कभी आंख से उनके आंशू बह रहे।।
वेह बुजुर्ग के पास काेई आदमी जाता नहीं,
हाल चाल उनका पुछ कर काेई आता नहीं।।
माता की उमर सत्तर पिता की असी साल है,
दाेनाें बहुत कमजोर बडा बुरा हाल है।।
इधर उधर कहीं चल फिर सकते नहीं,
वेह बेचारे ढंग से आंख भी देखते नहीं।।
जैसे-तैसे कर कभी खाना खाते हैं,
कभी फिर थक कर भूखे ही साे जाते हैं।।
ये वृद्ध उमर में वेह न जि रहे न मर रहे,
हम उन्हें देख कर भी अनदेखा कर रहे।।
कहाँ गई हमारी संस्कृति और सभ्यता ?
क्या यही है हम सभी की मानवता?
क्या यही है हम सभी की मानवता.......?
----नेत्र प्रसाद गौतम