सर्दी का सितम
नींद खुल जाती है उठने ही नहीं देती है,
ठंड बिस्तर से निकलने ही नहीं देती है।
कभी सीने से लिपटती है कभी पैरों से,
ठंड अपने से दूर होने नहीं देती है।
द्वार पर पहरा लगा देती घने कोहरे का,
ठंड खिड़की से झांकने भी नहीं देती है।
जी में आता है कि देखें नजारा सुबहा का,
ठंड सूरज को निकलने ही नहीं देती है।
मुंह छिपा कर निकलते इसके सितम के मारे,
ठंड चेहरे नहारने ही नहीं देती है।
हाथ मुंह धो कर निकल आते हैं हम चुपके से,
ठंड मल-मल के नहाने ही नहीं देती है।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट उच्च न्यायालय, ग्वालियर

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




