ऐ मेरे दिल
किस बात का डर है तुझे।
तू क्यूं उदास है
देख तेरा दिल
तो तेरे पास है।
जलजलें ज़माने की
यूं हीं उठती रहेंगी।
सबकुछ निगल जाने को
फौरी दिखेंगीं।
मैं मानता हूं
संभलना जरूरी है।
पर डरना नहीं
किया है प्यार कोई
इल्ज़ाम नहीं तो
फिर ये कैसी तन्हाई
क्यूं ज़ुल्म है बरपा
मेरा दिल कहीं
तो तेरा दिल कहीं
और क्यूं तड़पा।
बरस जा तू गुस्ताख़
निगाहों पर सावन की तरह।
कर दे ठंडा सबको
पुस की रात की तरह।
तुझे क्यू डरना
तू डटा रह प्यार की
जज्बात की तरह।
लबालब नदियों की बहाव की तरह..
बरसती बूंदों की बौछार की तरह..
दुश्मनों पर आफ़त के तरह
दुश्मनों पर आफ़त की तरह..