जैसे जैसे याद किया उनकी परछाई पीछे आई।
उम्र लम्बी कहें या मन की संतुष्टि समझ न पाई।।
गजब का संयोग घटता देखा सच्ची मोहब्बत में।
कायनात का भी इसमें हाथ होता समझ न पाई।।
हवा के साथ बारिश भी बडे हक से अन्दर आई।
मुकद्दर में भींगना लिखा 'उपदेश' समझ न पाई।।