"ग़ज़ल"
वो ना-समझ हैं जो कहते हैं ख़ुदा से डर के देखो!
अगर देखना है तो रब से प्यार कर के देखो!!
मरते वक़्त सुकून हो चेहरे पे लबों पे मुस्कुराहट हो!
इंसानियत की राह पे ज़िंदगी बसर कर के देखो!!
बहिश्त पहुॅंचते हो कि जहन्नम में जा गिरते हो!
अपने ज़मीर के पुल-सिरात से हर रोज़ गुज़र के देखो!!
अगर तपता है सोना तो बन जाता है कुन्दन यारों!
अपनी कमियों को ख़ुद दूर करो और सॅंवर के देखो!!
ख़ुद को समेटने की अहलियत भी तुम में है कि नहीं!
ये जानना हो तो ख़ुद को तोड़ो और बिखर के देखो!!
मौत इक नई ज़िंदगी के आग़ाज़ के सिवा कुछ भी नहीं!
अगर यक़ीं नहीं तुम्हें 'परवेज़' तो मर के देखो!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




