खुद की तकलीफ़ को परीक्षा समझने वाले।
दुसरों की तकनीक को सजा समझने वाले।।
भूल जाते शायद इंसानियत की जिम्मेदारी।
बेशक हक जताए यहाँ अपना समझने वाले।।
रिश्ते एक दूसरे को देखकर चर्चा करने लगे।
गरीबी को समाज की बीमारी समझने वाले।।
संस्कारों का प्रतिवाद सुसंगति की कहानी।
विश्वास पर खरे नही आत्मशांति समझने वाले।।
साधारण सी जरूरते 'उपदेश' अभिशाप बनी।
ले न पाए ज़न सुविधा अधिकार समझने वाले।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद