थक गया हूँ सभी स्वार्थी लोगों से,
जो हँसते हैं मेरी टूटी रूहों से।
जिन्हें मतलब है बस अपने फायदे से,
क्या रिश्ता हो, क्या दर्द हो… उन बातों से?
मैंने चाहा था बाँटना साँझें दिल की,
पर वो पूछते रहे — “फ़ायदा क्या है इससे?”
हर आह मेरी उनके लिए मज़ाक बनी,
हर ख़ामोशी भी नफ़रतों में ढलती रही।
अब मैं अपने ही साए से डरता हूँ,
कहीं वो भी न हो किसी की चालों से।
अब किसी को भी दिल दिखाना मुश्किल है,
हर मुस्कान के पीछे सौ नकाब होते हैं।
कभी जो खुद को आइना समझा करता था,
आज वो भी बेजान है, झूठी अदाओं से।
थक गया हूँ — नहीं चाहिए कोई अपनापन,
जिसमें शर्तें हों, सौदे हों, या उम्मीदें हों।
अब तो खुद से ही गुफ़्तगू ठीक लगती है,
कम से कम वो भी तो दिल से मिलती है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




