कापीराइट गजल
राहें थी ना मंजिल थी, जब हम चले अकेले
साथ हमारे कोई न था, हम थे निपट अकेले
हम आगे बढ़ते ही रहे कांटों के संग राहों में
यूं झेल रहे थे धीरे-धीरे, एक से एक झमेले
धूल उड़ाते चलते रहे, हम आंधी की बाहों में
साथ थी ये मदमस्त हवा और आंधी के मेले
जब हमको तूफानों ने, घेरा बीच समन्दर में
दगा दे दिया साहिल ने, थे ये लहरों के रेले
मंजिल की चाहत में हम, चलते रहे राहों में
मिलेगी ये मंजिल कैसे, सोच रहे थे अकेले
मिलती है मंजिल सबको कोशिश करने पर
यही सोच कर हम यारो चलते रहे अकेले
गर पाना है मंजिल तू करना कोशिश यादव
वरना मंजिल की राहों में रह जाओगे अकेले
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है