जहाँ में है पैसा बहुत कुछ, पर सब कुछ नहीं
खरीद नहीं सकते माँ का प्यार, अचरज नहीं
चाहे दो बेसुमार पैसा, गुजरा वक्त आता नहीं
पैसा ही स्वस्थ रखता, अमीर बीमार होते नहीं
ताउम्र रही पैसे की चाह, मरने पर साथ नहीं
झूठ बोला, ईमान डोला, क्या क्या किया नहीं
सोने से पेट नहीं भरता, क्यूं रोटी पर सब्र नहीं
हो कितना ही पैसा, बोलते हो हमेशा कुछ नहीं
जग में अमीर हैं बहुत, पर सब में जमीर नहीं
अमीर को बनाते हैं दोस्त, गरीब की कद्र नहीं
मुंह फेर लेते हैं रिश्तेदार, पैसे मांगेगा तो नहीं
पैसा आता है जाता है, जीवन बार-बार नहीं
पैसा बताता हैं औकात इंसान की, योग्यता नहीं
जीवों में सिर्फ इंसान के पास पैसा है, है कि नहीं
भरपेट खाते हैं जीव, आदमी का पेट भरता नहीं
लेन-देन सरल बनाया, अब पीछा छोड़ता नहीं
दे सकता है रोटी, कपड़ा, मकान, सुकून नहीं
पैसा दिमाग में फितूर पैदा करता, है कि नहीं
खरीद लेते हैं इन्साफ भी, जो हैं पैसे के धनी
पैसे बिन अब तो भगवान् भी देते दर्शन नहीं...
----जय गोपाल