पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत,
सिसक - सिसक फिर उस पर रोना मत।
मातृस्नेह की छाँव या पिता-सा चिंतक,
भाई जैसा मित्र या बहन-सी हितचिंतक,
मिलते नहीं सहज, इनसे दूर होना मत,
पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत,
सिसक - सिसक फिर उस पर रोना मत।
सुख-दुख की साथी जो बनी अर्धांगिनी,
कांधे पर उठाकर पुत्र जो देगा मुखाग्नि,
मिलते नहीं सहज, रिश्ता बिगोना मत,
पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत,
सिसक - सिसक फिर उस पर रोना मत।
मित्र सदैव तत्पर करने न्यौछावर प्राण,
रक्त संबंध न होकर भी चाहते कल्याण,
इनसे बिछड़कर कर फिर रोना-धोना मत,
पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत,
सिसक - सिसक फिर उस पर रोना मत।
🖊️सुभाष कुमार यादव