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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सुना है कि वो चांद हो गए

कापीराइट गजल

सुना है कि वो अब चांद हो गए हैं
मगर किसके हुए ये मालूम नहीं है

आसमां पे उभरा है, एक चांद नया
मगर यह किसका है मालूम नहीं है

चौदहवीं, के चांद से, याद आते हो
मगर, आओगे कब, मालूम नहीं है

दूज के चांद की तरह, छुपे हैं कहीं
पर वो छुपते हैं क्यूं, मालूम नहीं है
 
गर ईद के चांद से वो नजर आ गए
हम जाएंगे कहां यह मालूम नहीं है

उससे मिलने की, हसरत है दिल में
किस, तरह से मिलूं, मालूम नहीं है

इसी कशमकश में उलझा है यादव
क्या कहें हम उन से मालूम नहीं है


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

शिवचरण दास said

बहुत खूब लेखराम जी. ...जब तक मालूम नहीं तब तक चाँद है

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद सर, आपको सादर नमस्कार

श्रेयसी said

सुप्रभात सादर प्रणाम लेखराम भैया 🙏🙏 हमेशा की तरह लाज़वाब रचना बहुत सुंदर बहुत ख़ूब।इसी तरह अपनी रचनाओं से हमें आनंदित करते रहिए जब भी वक़्त मिले।

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद मेरी प्यारी बहना, आपको सादर नमस्कार

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना।👌👌🙏

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक शुक्रिया सुभाष जी, आपको सादर नमस्कार

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय लेखराम जी, हमेशा की तरह दिल में लहरों की तरह उतरने वाली गजल।काश लिखते समय हम आपके करीब होते। देखते कि आप किस तरह सोचते हैं, लिखते समय आपका अंदाज कैसा होता है। आपकी रचना की किन शब्दों में तारीफ करें, हमें मालूम नहीं। सादर वंदन अभिनंदन।

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद समदिल जी, जिस दिन मौसम हो, मौका हो और दिल गुनगुनाए तो मेरी उंगलियां गजल लिखने के लिए बेकरार हो जाती हैं बस एक बार शुरू किया तो पूरी करके ही दम लेती हैं, आज की रचना सुबह 9 बजे उस समय लिखी जब मैं अपने घर के बाहर छोटी दीवार पर बैठा था, बस अचानक मन किया और दस मिनट में ही गजल पूरी कर दी। जब मूड बन जाता है तो विचारों की कङी खुद ब खुद चल पङती है। आपको सादर नमस्कार।

वन्दना सूद said

वाह वाह sir
गर ईद के चांद से वो नजर आ गए
हम जाएंगे कहां यह मालूम नहीं है
👌👌👏👏

Lekhram Yadav replied

आदरणीय वन्दना जी आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या खूब चाँद के बहाने इश्क़, इंतज़ार और उलझन को बखूबी बयाँ किया है आपने, आदरणीय यादव सर जी को सादर प्रणाम 🙏🙏

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब।

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