कापीराइट गजल
सुना है कि वो अब चांद हो गए हैं
मगर किसके हुए ये मालूम नहीं है
आसमां पे उभरा है, एक चांद नया
मगर यह किसका है मालूम नहीं है
चौदहवीं, के चांद से, याद आते हो
मगर, आओगे कब, मालूम नहीं है
दूज के चांद की तरह, छुपे हैं कहीं
पर वो छुपते हैं क्यूं, मालूम नहीं है
गर ईद के चांद से वो नजर आ गए
हम जाएंगे कहां यह मालूम नहीं है
उससे मिलने की, हसरत है दिल में
किस, तरह से मिलूं, मालूम नहीं है
इसी कशमकश में उलझा है यादव
क्या कहें हम उन से मालूम नहीं है
सर्वाधिकार अधीन है