यह कैसा विकास है,
जहां अपने ही राष्ट्र में,
अपने ही नागरिक का।
यह हाल है।
वोट महिलाएं भी देती है,
फिर क्यों,
उनकी कहानी
माला और मोमबत्तियां पर ला दी जाती है।
नाम बदलते हैं, उम्र बदलती है,
गुनहगार बदलते हैं, देश का राज्य बदलता हैं।
न्याय को तरस रही हैं,
लाखों रुहे।
सिसक सिसक कर रोज मर रही है, लाखों बेटियां।
किताबों से पहले तलवार दो,
हर बेटी के हाथ में कटार दो।
जो देखे कोई उन्हें निगाह उठाकर,
उनसे कहो, उनकी आंखें निकाल दो।
सिसक रही हैं,
लाखों जिंदगियां, इन अत्याचारों के पिंजरे में।
आजाद कर दो, अपनी बेटियां।
महिला सशक्तिकरण,
कहने से नहीं, करने से होगा।
यह बेटियां है, भारत माता की,
हिमालय पर जाकर दहाड़ दो।