अहंकार था अल्पज्ञान से,
उत्तरों से भरा रहता था,
कैसे,किसे,कब,कहाँ,कौन,कोई,
पूछने वाला खोजा करता था,
हर बात पर पक्ष रखता,
ऐसा नहीं, वैसा कहता था,
स्वयं को मानता श्रेष्ठ,
सदैव भ्रम में फिरता था,
एक सज्जन ने जब कहा,
उत्तर से महत्वपूर्ण है प्रश्न,
अंतर्मन में झाँको देखो तुम,
खुद को पहचानो, हो कौन तुम?
उठा एक क्षण अंधड़ मन में,
उस प्रश्न से हुआ विचलित,
दे न सका उसका कोई उत्तर,
हुआ जब से निरुत्तर मौन हूँ,
हराया जिस प्रश्न ने मुझे,
वो प्रश्न है, मैं कौन हूँ?
🖊️सुभाष कुमार यादव