अगम में मंजिलें
तमस से तमस की सैर है ये जहां।
मशाल-ए-दिल लिए निकल पड़े।
अंधा चले अंधे की आस्तीन थामें।
अनन्त की यात्रा पर निकल पड़े।
हर बार सवाल एक उभरता रहा।
किधर आलोक क्या रोशन हुआ।
नजरो की रोशनी जो खोकर बैठे।
मशाल से राह रोशन करने चले।
भटक न जाए, अनजानी है डगर।
गूँज उठे आवाज़, हाथ थाम चले।
मशाल रोशन न करती नयन दीप।
मंजिल है अंधेरों के साम्राज्य तले।
भविष्य के अंधकार में जो झांकते।
क्या कुछ कोई वे हासिल कर पाते।
अगम का अवसर जो कहीं मिलता।
भुला खुद का वजूद आजादी पाते।
सतगुरु की अंगुली थामे बढ़ते चले।
गुरूमणि ह्रदय राह रोशन कर चले।
बात रही आस्था की राह में खो गए।
पा गए अगोचर में अगम में मंजिलें।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




