Universal Donor हूँ मैं —
इसलिए O Positive हूँ मैं।
रक्त ही नहीं,
भाव भी देता है मेरा अस्तित्व —
बिना पूछे, बिना चुने।
मैंने हर बार
अपनी नसें खोल दीं,
कभी देह देकर,
कभी धैर्य देकर,
कभी चुप रहकर।
जिसे भी ज़रूरत थी —
मेरा होना
उसकी ज़िंदगी का मरहम बन गया।
मैंने कभी प्रश्न नहीं किया,
कि वो मेरे कितने क़रीब है
या कितना दूर।
क्योंकि
सर्वदाता का कोई चयन नहीं होता —
उसका होना ही
दूसरों के जीवन का आधार होता है।
मैंने अपने भीतर
ख़ून से ज़्यादा बहाया है
विश्वास,
वह मौन करुणा
जो हर स्त्री की रगों में
चुपचाप बहती है।
O Positive हूँ मैं —
क्योंकि
मैंने हर नकार में
स्वीकृति ढूँढ ली है।
हर तोड़ने वाले को
समर्पण दे दिया है।
हर ‘मैं नहीं हूँ’ में
अपने ‘मैं हूँ’ को
जलाया है।
Universal Donor हूँ मैं —
इसलिए नहीं कि मेरा ख़ून
सबसे मेल खाता है,
बल्कि इसलिए
कि मेरी आत्मा में
हर किसी के दुःख की संगत बसी है।
मैं वो स्त्री हूँ
जो अपनी धमनियों से
सिर्फ़ रक्त नहीं,
युगों का धैर्य बहाती है।
जिसने मुझे छीना,
उसे भी बचाया मैंने —
जिसने मुझे जलाया,
उसे भी साँसें दीं मैंने।
हर बार जब किसी ने कहा —
“तेरा होना भारी है,”
मैंने अपने भीतर
एक नस और काट दी —
ताकि उनका बोझ
हल्का हो सके।
मैं Universal Donor हूँ —
क्योंकि मैं वो देह हूँ
जो हर बार जीती है
दूसरों के लिए मरकर।
मुझमें बचा क्या है?
मत पूछो।
मैं अब माँस नहीं,
बस आदत बन चुकी हूँ —
दिए जाने की,
भूल जाने की,
और फिर भी मुस्कुराने की।
मैंने हर ‘ना’ को
‘हाँ’ में तब्दील किया है —
अपने ही रक्त से,
अपनी ही शांति की हत्या करके।
अब तो हाल ये है कि दिल भी कहता है —
“अब मत बाँट, अब तो बचा ले थोड़ी सी कराहें