तू मिल के भी ना मिली
तेरा मिलना तो जैसे एक बहाना था
मंजिलें जुड़तीं चलीं गईं
कारवां बढ़ता रहा जैसे कोई
नया फसाना था।
कभी इस डाल तो कभी उस पात
हर राह घाट पर मुझे तन्हा रहना था
तेरा मिलना तो जैसे एक बहाना था..
सब्ज़ बाग़ में सपनों के खोए खोए
हक़ीक़त में सब लूट जाना था
मैं समझा तू आईं बन के बहार
पर तेरा मिलना तो पतझड़ का
ज़माना था।
तेरा मिलना तो जैसे एक बहाना था..
यादों की सुरीले स्वरों में मैं तो
हर पल तेरा हीं नाम पुकारा था
मैंने लाख किया तेरा इंतेज़ार
पर तू कभी भी लौट कर के
न आने वाला था।
तेरा मिलना तो जैसे एक बहाना था
तुझे तो छोड़ के इस दिल को ज़ाना था
तेरा मिलना तो जैसे एक बहाना था...
तुझे तो छोड़ कर इस दिल को जाना था..