अधरों की मुस्कान में नही ढूँढ पाओगे मुझे।
सागर में किसी सीप के अन्दर पाओगे मुझे।।
एक दिन जब मैं तुम्हें कहीं देखूँगी ही नही।
मन की दीवारों पर प्रेम के रंग में पाओगे मुझे।।
अमिट छाप छोड़ जाऊँगी न मिलूंगी तुम्हें।
विलुप्त होते अवशेषों में 'उपदेश' पाओगे मुझे।।
कई जगह बिताए दिन रात याद करके रोना।
मुरझाए फ़ूलों की पंखुड़ियों पर पाओगे मुझे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद