आसमां ये छलकता रहा रात भर
मुख ज़मीं का दमकता रहा रात भर
बादलों के तले अनमना मन लिए
दूधिया चांद छुपता रहा रात भर
पात हंसता रहा पेड़ जगता रहा
दिल मगर ये भटकता रहा रात भर
शोर जब नाचती इक लहर का सुना
दर्द सा कुछ उमड़ता रहा रात भर
इन बरसती फुहारों में क्यों ये शहर
रूप अपना बदलता रहा रात भर...
कवियित्री - कमला शरमन जी