कागज़ है मैदान-ए-जंग, कलम तलवार है,
शब्द मेरे ढाल, विचार ही मेरा हथियार है।
मैं घायल सिपाही हूँ, टूटे हुए लशकर का,
हार जाऊँ भले, मजबूत मेरा हर प्रहार है।
फ़रेब करता है कर, लड़ूँगा ईमानदारी से,
खयाल का भाला तेरे मन के आर-पार है।
जो लिख सकता था मगर लिखा ही नहीं,
वो आदमी गद्दार था और वो गद्दार है।
सिर्फ सर काट कर जीतना उद्देश्य नहीं,
बदल सकूं दिलोदिमाग, इसकी दरकार है।
🖊️सुभाष कुमार यादव